भाजपा के सामने असली चुनौति आने वाले 9 राज्यों के चुनाव हैं

राजनीति            Mar 28, 2022


राकेश दुबे।

भाजपा अब २०२४ के महासमर की तैयारी में जुट गई है| उत्तर प्रदेश.उत्तराखंड, मणिपुर व गोवा में पुराने मुख्यमंत्रियों को राज्यों की कमान सौंपने के बाद उसे अब मध्यप्रदेश सरीखे राज्यों में जिताऊ चेहरों की तलाश है|

इस तलाश में भाजपा को रस्साकशी और अग्निपरीक्षा के साथ ही उन नये पुराने वायदों को भी स्मरण करना होगा जो तख्ता पलट कर सरकार बनाते समय “सहारों” से किये गये थे, वे सहारे अब ‘जो वादा किया है’ का राग अलाप रहे हैं |

भाजपा पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में से चार में सरकार बनाने में कामयाब हुई है अब भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाने में जो देर लगाई उसके निहितार्थ तलाशे जा रहे हैं।

उत्तराखंड, मणिपुर गोवा और उत्तर प्रदेश में पुराने मुख्यमंत्रियों को राज्यों की कमान सौंप दी गई है। उत्तर प्रदेश के जंबो मंत्रिमंडल में 52 मंत्रियों को शामिल करने का मतलब यही है कि पार्टी 2024 के महासमर की तैयारी में जुट गई है।

मंत्रिमंडल में जातीय संतुलन व ओबीसी के भाजपाई चेहरे केशव प्रसाद मौर्य को चुनाव हारने के बावजूद उप मुख्यमंत्री बनाना इस रणनीति का द्योतक है।

दिल्ली में सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है जिसकी झलक योगी सरकार की दूसरी पारी के शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत बारह प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के भाग लेने के रूप में साफ़ दिखाई दी है।

मुख्यमंत्रियों के चयन में माथापच्ची के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने महसूस किया कि नये चेहरे बदले जाने से पार्टी में गुटबाजी और तेज़ होगी। वहीं दूसरी ओर वर्ष 2024 के आम चुनाव की तैयारी में विघ्न भी आ सकता है। यही वजह है कि पुराने चेहरों में विश्वास जताया गया। मध्यप्रदेश में यह मापदंड बदल भी सकता है।

थोड़ा पीछे जायें तो वर्ष २०१७ के हिमाचल विधानसभा के चुनाव में पार्टी को सरकार बनवाने का अवसर देकर मुख्यमंत्री का चेहरा रहे प्रेम सिंह धूमल चुनाव हार गये थे तो जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल गई थी।

लगता है कि भाजपा आलाकमान पुराने मुख्यमंत्रियों को दोहराकर 2024 के आम चुनावों के मद्देनजर स्थिरता को प्राथमिकता दे रहा है।

इसी कड़ी में गोवा में प्रमोद सावंत और मणिपुर में एन वीरेन सिंह पर भरोसा जताया गया है जबकि योगी आदित्यनाथ की ताजपोशी को लेकर किसी तरह का संशय ही नहीं था।

उत्तर प्रदेश में केशव प्रसाद मौर्य अपनी बहुचर्चित सिराथू सीट से हार गये थे। दरअसल, उत्तर प्रदेश में केशव प्रसाद को भाजपा का ओबीसी वर्ग का प्रतिनिधि चेहरा माना जाता है। पार्टी ने उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड आदि राज्यों में चुनाव के दौरान जनता के आक्रोश को करीब से देखा और कोशिश की कि ये शिकायतें उसे आम चुनाव के दौरान न मिलें।

उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं के संकट और उसके खिलाफ जनता के तीव्र आक्रोश को अंतिम समय में भांपकर पार्टी ने कारगर समाधान का वायदा किया था। उत्तर प्रदेश में शपथ ग्रहण समारोह के तुरंत बाद योगी द्वारा कैबिनेट की मीटिंग बुलाया जाना इस बात का संकेत है कि जनता से किये वायदों पर अमल करने की रणनीति को अंतिम रूप दिया जा रहा है।

वहीं उत्तराखंड में भी धामी को इस बात का पुरस्कार दिया कि छह माह के अंतराल में तीसरे मुख्यमंत्री बनने के बावजूद वे पार्टी को एकजुट बनाये रखने में कामयाब हुए। साथ ही पार्टी को राज्य में पूर्ण बहुमत दिलाने में सहयोग किया।

इसी तरह गोवा में मुश्किल स्थितियों में अच्छा काम करके पार्टी को बहुमत के करीब जनादेश दिलाने के लिये प्रमोद सावंत को पुरस्कृत किया गया।

इसके बावजूद इन नेताओं के सामने चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। असली चुनौती आने वाले 9 राज्यों के चुनाव हैं वहां भाजपा की कामयाबी इस बात पर निर्भर करेगी राज्यों में मौजूद सरकारों का रिपोर्ट कार्ड क्या है ? चुनौतियों और नये जनादेश के बाद राजकाज कितने बेहतर ढंग हुआ है।

 



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