प्रकाश भटनागर।
भाई हम तो ठहरे दर्शक। अधिकांश मौकों पर मूक तो कभी औकात से बाहर आकर कुछ हद तक मुखर भी। आप ठहरे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री। यानी यहां के सर्वेसर्वा। कभी चुपचाप किसी को निपटा दिया तो कभी मामला खुला खेल फरूर्खाबादी वाला।
तो जनाब, यह दर्शक आज आॅल इंडिया रेडियो की तरह आपसे 'हैलो फरमाइश' करना चाह रहा है। आपने कल इशारों-इशारों में दिल लेने वाली बात कह दी। संकेत दिया कि बीते चुनाव में निपटी पन्द्रह साल की सरकार को और बुरी तरह निपटाने की तैयारी है।
कुछ बड़े आकार के गड़े मुर्दे बाहर आने वाले हैं। आपने फरमाया कि इससे डरकर ही आपके साहबजादे के संस्थान की जमीन पर भूकम्प लाया जा रहा है। आपको किसी आॅडियो रिकॉर्डिंग की आड़ में उलझाने की कोशिश की जा रही है।
अब देश के सबसे अमीर सांसद नकुल नाथ की कुछ करोड़ की जमीन और निर्माण क्रमश: छूट तथा टूट भी गए तो क्या! मान लेंगे कि समुद्र से कुछ लोटा पानी बाहर चला गया। और आॅडियो रिकॉर्डिंग तो होती ही है सुनने/सुनाने के लिए।
गौर से सुनो तो इस रिकॉर्डिंग में बहुत कुछ है। ज्यादा ध्यान न दो तो इसमें वही है, जो हर मुख्यमंत्री के साथ होता है। वही बंदोबस्त। ताकत का दंभ। उसके प्रदर्शन की धमकी। आदि-आदि। इसमें नया कुछ भी नहीं है।
हमें आपके बारे में तो पता चला, चुनांचे हमारा गौर तो इस बात पर है कि आप पूर्ववर्ती हुकूमत के किन-किन कर्मकांडों की पोल खोलने जा रहे हैं। जरूर आपके पिटारे में कुछ ऐसा है, जो हमारे कौतुहल का विषय है। ऊपर वाले की दया से शिवराज सिंह चौहान इस दिशा में आपके लिए पर्याप्त इंतजाम करके गये हैं।
आपका उनके साथ गले मिलता और ठहाका लगाते फोटो तो हमने इन छह महीनों में बहुत देख लिए, हम इंतजार कर रहे हैं कि अब आप उनके शासनकाल वाली जाजम की धूल झटकारिये, दनादन घपले-घोटाले हवा में उड़ते नजर आने लगेंगे।
ई-टेंडरिंग कांड तो पहले ही राजनीतिक वायुमंडल में किसी सैटलाइट की तरह अपनी कक्षा में स्थापित है। फिर इसका छोटा भाई व्यापमं घोटाला है।
आपके लिए असीमित संभावनाओं वाली माखनलाल चतुवेर्दी यूनिवर्सिटी मौजूद है। वीके कुठियाला ने जमकर इसके हितों पर कुठाराघात किया। वह 'मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक। सरकारी धन से दारू पीने, जिस पथ जाते कुलपति अनेक' की शैली में आपके लिए जांच और कार्रवाई का भरपूर मसाला छोड़ गये हैं।
सरकारी अमले को अपनी पर उतरने की छूट देकर देखिए। कंडम दिख रहे डंपर कांड को वह फिर नयी चमचमाती शक्ल देकर उससे शिवराज को कुचलने का बंदोबस्त कर देंगे। दिग्विजय सिंह पहले ही फुर्सत में थे। लोकसभा चुनाव के बाद उनकी हालत और विचित्र है।
वोटर ने 'हमको निठल्ला कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के' वाली हालत के शिकार हो गये हैं। उन्हें नया रोजगार देकर नये स्वरूप की नर्मदा यात्रा पर भेजें। जहां बीती सरकार में इस नदी की रेत के अवैध उत्खनन में सरकारी जुगलबंदी की बात के सबूत तलाशे जा सकें। उस पौधरोपण की बखिया उधेड़ने का काम दिग्विजय को दे दें, जो नाममात्र को किया गया और उसके नाम पर लाखों के वारे-न्यारे हुए।
आपके पास भावांतर के नाम पर पनपाये गये सियासी भगंदर को चीरा लगाकर अलग करने का भी पूरा अवसर है। प्याज खरीदी के नाम पर ब्याजखोरी जैसे सरकारी गोरखधंधे की जांच का पूरा-पूरा अवसर है। मंदसौर गोली कांड, जहां कर्ज माफी का वादा करके भी कांग्रेस की दुर्गति हो गई, वो भी आपकी मुरादों वाली झोली को भर सकता है।
पर हमारा आग्रह है, जल्दी कीजिए, और इस प्रदेश की जनता को पिछले पन्द्रह साल का काला सच बताईए। उस सरकार का उजला पक्ष तो जनता ने उसे पन्द्रह साल का समय देकर दिखा ही दिया था।
तो कमलनाथ जी। अब शुरू हो भी जाइए। कहा भी गया है कि शुभस्य शीघ्रम। हमारी मनुहार को 'जल्दी का काम शैतान का' से टालने की कोशिश मत करें। क्योंकि शैतान तो पहले ही जल्दी मचा रहे हैं।
लोकसभा चुनाव के नतीजे से पहले ही आपका बोरिया-बिस्तर बांधने की तैयारी में लग गये थे। लिहाजा समय जैसे को तैसा वाला है। आप भी शीघ्रता करें। प्रतिशोध वाली मथनी से पूरे वल्लभ भवन को मथ डालिये। मक्खन ही मक्खन लगेगा आपके हाथ, इसकी गारंटी है। मक्खन की गजब फितरत है। रोटी पर लगे तो पेट भरता है। पांव के नीचे आये तो आदमी फिसल के गिरता है।
तो यह आपका विशेषाधिकार कि इस मक्खन को रोटी पर लगायें या पांव-पांव वाले भैया के पैर के नीचे उसे डालकर उनके औंधे मुंह गिरने का बंदोबस्त करें। ऐसा आप कर पाएंगे या नहीं, यह आपकी सरकार को मिले समय पर निर्भर करता है। क्योंकि हम देख रहे हैं कि आप भीतर और बाहर दोनों तरफ से दबाव में है।
हर सरकार को अपनी पिछली सरकार के काले पीले सामने लाना ही चाहिए। यकीन मानिए, यह स्वस्थ प्रक्रिया का हिस्सा है। इसमें नेताओं को बुरा लग सकता है लेकिन जनता इसका बुरा नहीं मानेगी। हम तो देखना ही चाहते ही कि आखिर सत्ता पर सवार सत्ताधारी किस हद तक गिरते हैं या जनता को बेवकूफ बनाने की उनकी क्षमता कितनी श्रेष्ठ होती है।
तिवारी कांग्रेस के दौर में अर्जुन सिंह ने अपने विधायकों की दम पर दिग्विजय सिंह को परेशान करने का जतन किया। दिग्विजय ने मथनी घुमायी। तुरंत एक ड्राइवर की संदिग्ध मौत की फाइल मक्खन की शक्ल में उनके सामने प्रकट हो गयी। ड्राइवर को पता नहीं किसने शांत किया था, लेकिन उसकी फाइल की बात एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक में छपते ही अर्जुन सिंह भी खामोश होकर टुकुर-टुकुर अपने राजनीतिक शिष्य को देखते रहे गये।
कहां उनका चश्मा ऊपर-नीचे होते ही नौकरशाही दहल जाती थी और कहां वल्लभ भवन के किसी फाइल खोजू बाबू के चलते वह खुद दहलकर रह गये। तो आपको भी ऐसा करना ही होगा।
आज हुकूमत आपके दरबार की रक्कासा है। आपके हुजूर में हम भी उसका नृत्य देख लेंगे। कल को यही रक्कासा किसी और के इशारे पर नाचेगी, तो हम वह भी शौक से देखना चाहेंगे। क्योंकि यह बहुत जरूरी हो चुका है।
इस प्रदेश को यह बताने की जिम्मेदारी हर सत्तासीन की होनी चाहिए कि बीते शासन में क्या-क्या कालापीला हुआ। किस-किस तरह गलत को सही बनाकर प्रश्रय दिया गया। हमें यह जानने का हक सूचना का अधिकार लागू होने से भी कई दशक पहले से मिला हुआ है और वर्तमान में इस दिशा में कर्तव्य की गेंद आपके पाले में है।
हमारी यह फरमाइश किसी के मजे लेने के लिए नहीं है। यह इसलिए है कि हम डेढ़ दशक के नंगे सच को देखकर सबक लेना चाहते हैं। जिस समय आप हुकूमत से दूर होंगे, तब भी हम आपकी जगह मुख्यमंत्री बने शख्स के जरिये यही देखना चाहेंगे कि पंद्रह साल बाद फिर आपकी पार्टी पर जताये गये हमारे विश्वास में कहीं विष का वास तो नहीं था।
इसी राज्य की विधानसभा के एक नेता प्रतिपक्ष थे। सदन में गजब चीखते थे। एक महिला नेत्री की संदिग्ध मौत के मामले पर उन्होंने सरकार को घेरा। फिर टांय-टांय फिस्स हो गये। मैंने आॅफ द रिकॉर्ड बातचीत में इसकी वजह पूछी। उन्होंने पूरी तरह घुटी हुई शैली में कहा, मेरा काम एक मुद्दा हवा में उछालकर सरकार को उलझाना था। जो मैंने कर दिया।
इस लिजलिजे अनुभव के बाद मेरा आपसे आग्रह है कि कल वाले मुख्यमंत्री केवल मुद्दा हवा में उछालकर चुप नहीं रह जाएंगे। मॉनसून आने वाला है। इसलिये यदि आप गरजे हैं तो बरसने की जिम्मेदारी भी अब आपकी ही है।
चंद लोगों को इसे राजनीतिक प्रतिशोध कहने दीजिए। इसमें कुछ अनुचित नहीं है। क्योंकि आपका पश्चातवर्ती मुख्यमंत्री यदि आपके दल का नहीं हुआ तो तय मानिए कि वह भी आपकी खाट खड़ी कर देने में कोई कसर नहीं उठा रखेगा।
और यह भी तय मानिए कि उस मुख्यमंत्री से भी हम आपके लिए वही फरमाइश करेंगे, जो आज आपसे की है। क्योंकि हम पहले ही फरमा चुके हैं कि भले ही अधिकांश मौकों पर हम मूक रहते हों, लेकिन कभी-कभी कुछ हद तक मुखर होना भी हमें आता है।
फिर उसके लिए चाहे औकात से बाहर ही क्यों न जाना पड़े। ऐसा करने से कम से कम जन प्रतिनिधियों की औकात तो सामने आ ही जाएगी। धन्यवाद।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और एलएन स्टार समाचार पत्र में प्रधान संपादक हैं।
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