डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी।
एमपी बड़ा होता है या विधायक? आप कहेंगे एमपी। होता तो एमपी ही बड़ा है पर रतलाम- झाबुआ के सांसद बुरी तरह की दुविधा में फंसे हैं । कांग्रेस के दिग्गज कांतिलाल भूरिया को लोकसभा में हरानेवाले पूर्व ब्यूरोक्रेट भाजपा नेता गुमान सिंह डामोर आज की तारीख में विधायक भी हैं और सांसद भी। उन्हें 8 जून तक इनमें से एक पद से इस्तीफा देना होगा।
इन 2 पदों में से वे किस पद पर इस्तीफा देंगे, यह निर्णय उन्होंने पार्टी हाईकमान पर छोड़ दिया है। उन्होंने साफ कहा है कि जो पार्टी का निर्णय होगा वह मुझे मान्य होगा। लेकिन अभी तक तस्वीर साफ नहीं हो पाई है इसलिए वे बड़ी दुविधा में है।
नियमानुसार 25 मई को सांसद चुने जाने की अधिसूचना जारी होने के बाद 14 दिन का समय निर्धारित होता है कि वे कोई एक सीट से इस्तीफा दें। अब केवल चार दिन का समय शेष हैं।
इसी बीच डामोर ने भाजपा संगठन से आग्रह किया है कि वे शीघ्र इस बारे में निर्णय लें।
230 सदस्यों वाली मप्र विधानसभा में बीजेपी के सदस्यों की संख्या 109 है। अगर 7 विधायक और होते तो मप्र में बीजेपी की सरकार होती. पता चला है कि मध्यप्रदेश विधानसभा में बीजेपी विधायकों की संख्या को देखते हुए पार्टी डामोर को सांसद पद छोड़ने के लिए कह सकती है।
ऐसी स्थिति में वे विधायक बने रहेंगे और भाजपा के पास विधानसभा में 109 सदस्य संख्या बनी रहेगी।
पार्टी का मानना है कि अगर डामोर विधायक का पद छोड़ते हैं तो जब विधानसभा सीट पर उपचुनाव होगा, ऐसे में विधानसभा में बहुमत के आंकड़े से सिर्फ 2 सदस्यों की दूरी पर बैठी कांग्रेस इस सीट को जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा सकती है।
भाजपा-झाबुआ जिला संगठन की मंशा है कि डामोर दिल्ली में झाबुआ-रतलाम की आवाज को बुलंद करें। लेकिन डामोर विधायकी के सांसद बने रहने में ज्यादा इच्छुक हैं।
सूत्रों के अनुसार झाबुआ जिला संगठन पार्टी हाईकमान को यह आश्वस्त करेगा कि यहां जब भी चुनाव होंगे विधायक की सीट भी पर भी भाजपा का कब्जा बरकरार रहेगा।
बहरहाल, डामोर के इस मामले में बीजेपी को ही तय करना है। पता चला है कि अगले दो-तीन दिन में इस पर निर्णय हो जाएगा।
झाबुआ से पत्रकार अमित शर्मा के अनुसार डामोर भोपाल कूच कर गए हैं, फैसला जल्दी ही हो जाएगा।
Comments