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चौतरफा संकटों से घिरी नाथ सरकार में जनता को याद आते शिवराज

राज्य            Jun 09, 2019


राघवेंद्र सिंह।
सियासत बहुत बड़ा काम है। फुल टाइम जाब। जनता और समर्थकों के 99 काम करने के बाद अगर एक काम न हो तो सब बेकार हो जाता है। फरमाईशें भी ऐसी कि जो नियम हैं उसके खिलाफ काम कराइए।

गरीब नहीं है मगर गरीबी रेखा का राशन कार्ड चाहिए। तंग सड़क पर अतिक्रमण कर गुमटी लगवाईए। रेत और पहाड़ जेसीबी से खोदे जा रहे हैं तो ओवर लोड डंपर के साथ रेत की चोरी कराइए। इसके बाद मनमाफिक तबादले और अगर इस पर भी जरूरत पड़े तो चौबीस घंटे के भीतर आदेश में परिवर्तन कराइए।

ये सब काम हों और गुड गवर्नेस भी सब को मिले। मुश्किल है तलवार की धार पर चलने की तरह। फिसले तो भी कटना है और नहीं फिसले तो लहुलुहान तो होना ही है। अभी बिजली, जलसंकट, किसान, और कानून व्यवस्था की बात करना बाकी है।

तंगहाल माली हालत वाले राज में कमलनाथ की सरकार कदम कदम पर उलझन और अपयश की शिकार हो रही है। जितनी उम्मीद से जनता ने कांग्रेस और कांग्रेस ने कमलनाथ को हुकुमत सौंपी पांसा अभी तक तो उलटा पड़ रहा है।

हालात ये है कि सूबे में नाथ का राज है और हर दिन याद आ रहा है शिव का राज।

मुख्यमंत्री कमलनाथ की प्रतिष्ठा छह महिने पहले जितनी थी उसमें कांग्रेस और जनता के बीच भारी गिरावट आ रही है। गर्मी के मौसम में बिजली का गुल होते रहना कांग्रेस की बत्ती गुल कर रहा है।

कल तक मुख्यमंत्री को लेकर ये माना जा रहा था कि वे प्रदेश की सियासत में भले ही नए हों लेकिन केन्द्रीय मंत्रिमंडल में लंबे समय तक मंत्री रहने का तजुर्बा राज्य के हित में काम आएगा। लेकिन चुनाव के पहले तबादले और चुनाव खत्म होते ही फिर तबादलों की बरसात में प्रशासन को लकवाग्रस्त कर दिया है। अभी तो ये दौर और चलेगा।

इससे तंत्र में अराजकता का माहौल बनने का खतरा मंडरा रहा है। कलेक्टरों की पोस्टिंग को लेकर खींचतान और संभागायुक्त के एक एक हफ्ते में तबादले उच्चस्तर पर सरकार को लेकर नाराजगी पैदा कर रहे हैं।

हैरत की बात ये है कि किसी को इससे हो रही बदनामी का न तो डर है और न ही शासकीय मनमानी की चिंता। शुरुआत की बात याद करें तो पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने जरूर रेत चोरी,व्यापमं घोटाला,सिंहस्थ घोटाला वृक्षारोपण में गड़बड़ी और ई टेंडरिंग स्कैम को लेकर सरकार द्वारा दी गई क्लीनचिट पर नाराजगी जाहिर की थी।

मगर अब भोपाल लोकसभा चुनाव हारने के बाद उन्होंने भी फिलहाल खामोशी अख्तियार कर ली है।

कानून व्यवस्था को लेकर हत्या और भोपाल में छोटी बच्ची के साथ बलात्कार कर उसे मार देना पुलिस और सरकार की साख पर कालिख पोत रहा है। अभी ये सिलसिला थमेगा इसके आसार कम हैं।

दरअसल पुलिस महकमें में भी निचले स्तर पर तबादलों की फेहरिस्त बन रही है। दरोगा हवलदार बदले गए तो फिर मुहल्ले के गुन्डे बदमाशों पर पुलिस की पकड़ कमजोर होगी। ऐसे में संगीन अपराध करने वाले ज्यादा सक्रिय हो जाएंगे।

जलसंकट के दौर में पानी को लेकर हो रहे झगड़ों के साथ मुहल्ले मुहल्ले अपराधों का ग्राफ बढ़ने से रोकने के लिए पुलिस बल कम पड़ जाएगा। अनुभवी पुलिस अफसर आने वाले दिनों में कानून व्यवस्था को लेकर चिंतित हैं। इन मुद्दों पर पुलिस मुख्यालय से लेकर गृह मंत्रालय के पास कोई रोडमैप नहीं है।

नाथ सरकार की सबसे ज्यादा किरकिरी बिजली,पानी,किसान और कानून व्यवस्था को लेकर हो रही है। इस क्रम में बिजली संकट के मुद्दे पर जनता का धीरज टूट रहा है। लोग सड़कों पर उतरने लगे हैं।

बारिश के मौसम में अंधड़ के बीच शहरों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली के खंबे और तार आड़े तिरछे और टूटने पर हफ्तों बिजली गुल रहने का खतरा बढ़ गया है। इसके पीछे बारिश पूर्व बिजली रखरखाव नहीं होना अभी से एक बड़ा कारण अधिकारी अपने बचाव में बताने लगे हैं।

उनका कहना है चुनाव के चलते मैंटेनेंस नहीं हो पाया और अब बारिश के मौसम में क्षतिग्रस्त लाईन में सुधार कठिन काम होगा। इसलिए आने वाले दिन बिजली सप्लाई को लेकर जनता के लिए बहुत पकाने वाले होंगे। असल में बिजली को लेकर कमलनाथ की जो दिलचस्पी दिग्विजय सरकार में रहा करती थी उसे लेकर उम्मीद की जा रही थी कि कम से कम कुछ हो न हो बिजली आपूर्ति में हालात बिगड़ेंगे नहीं। लेकिन जिस काम में कमलनाथ उस्ताद माने जा रहे थे उसी में वे चित हो रहे हैं।

ऐसे में भाजपा के साथ अब आम जनता में भी शिव राज को लोग ज्यादा अच्छा मान रहे हैं। हर दिन बिजली और किसान के मुद्दे पर शहरों से लेकर गांव चौपाल तक शिव और नाथ की तुलना की जा रही है। लोग कह रहे हैं इस कमल से तो कमल का राज अच्छा था।

तबादलों को कांग्रेस की सरकारों में अघोषित रुप से उद्योग का दर्जा हासिल था। इत्तेफाक से पिछले छह महिने में तबादला उद्योग फिर जोर पकड़ रहा है। हैरत की बात ये है जिम्मेदार लीडर इस मुद्दे पर हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। एक महिने के तबादले में सरकार के कामों की रफ्तार तीन महिने पिछड़ जाती है।

इसके बाद बारिश शुरू हो जाएगी तो जाहिर है सरकारी कामकाज में गति दीवाली तक आएगी। इसका मतलब छह महिने और प्रशासन ठप्प।

किसान कर्ज माफी के मामले में पहले से ही कमलनाथ सरकार आलोचना की शिकार हो रही है। आशा थी चुनाव बाद इस पर धुंध छटेगी मगर ऐसा हो न सका।

सरकार ने तेरह लाख किसानों को फिलहाल कर्ज माफी की योजना से आवेदन न आने की आड़ में बाहर कर दिया है।

अब इससे जो दिक्कत हो रही है वह यह है कि बिना कर्ज माफी प्रमाण पत्र के किसानों को खरीफ की फसल के लिए कर्ज नहीं मिल रहा है। जो कि शिवराज सरकार में मिल जाया करता था।

एक और दिक्कत है जिन 22 लाख किसानों को कर्ज माफी सर्टिफिकेट देने की बात की जा रही है उन्हें बैंक अगले कर्ज के लिए मान्यता नहीं दे रहा है। ऐसे में किसान पर दोहरी मार पड़ रही है।

इसके अलावा गिरता भू जल स्तर,सूखते नलकूप और मैदान बनती नदियों ने किसानों की कमर तोड़ दी है। आश्चर्य ये है कि इस भीषण संकट को न तो कमलनाथ सरकार भांप पा रही है और न ही प्रशासन इससे पैदा होने वाले असंतोष से निपटने की तैयारी कर रहा है।

एक और बात संकट तो शिवराज सरकार में भी आते थे मगर शिवराज अपने सहज सरल और मिलनसार व्यवहार से बहुत सी नाराजगी और असंतोष का क्षणिक ही सही समाधान कर लेते थे। लेकिन कमलनाथ सरकार में न तो मुख्यमंत्री खुद सहजता से जनता के लिए उपलब्ध हैं और न उनके मंत्री।

संकट चौतरफा है और ऐसे में भाजपा कह रही है नाथ सरकार की असफलता और अपयश के चलते शिव का राज पहले से ज्यादा लोकप्रियता पा रहा है।

हकीकत यही है भाजपाई यह भी कहते हैं कल तक जो हमारी आलोचना करते थे वे नाकाम होती नाथ सरकार को देख कहने लगे हैं इससे तो भाजपा ही ठीक थी।

 


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