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साफ-सुथरे बेहतरीन नेकदिल इंसान को मेनस्ट्रीम मीडिया ने गरीब मोहताज बना दिया

स्पोर्टस            Oct 09, 2022


ओम प्रकाश।

असद रऊफ की मैयत लेकर एंबुलेंस घर पहुंचती है. अभी लाश को नीचे नहीं उतारा गया है. वहां 5-6 महिलाएं रोती हैं.

पूछने पर पता चलता है कि असद अपने पैसे से इन महिलाओं को हर महीने राशन मुहैया कराते थे.

वह जब विदेश में होते थे तब भी उन्हें गुरबत में गुजारा करने वाली इन महिलाओं की फिक्र रहती.

असद की इकलौती बहन के शौहर 20 बरस पहले गुजर गए थे,  तब से वह अपनी बहन और भांजे-भांजियों की देखरेख करते थे।

हर मुश्किल में उनके साथ खड़े रहे।

लाहौर के शादबाग इलाके के जिस कब्रिस्तान में उन्हें दफनाया गया,  असद पहले से वहां आते-जाते थे।

वजह, उनके वालिद और वालिदा की वहीं पर कब्र थी।

असद कब्रिस्तान में कब्र की जगह मुकर्रर करने वालों से कहते कि इंतकाल के बाद उन्हें उनके वालिदैन की कब्र के पास ही जगह दी जाए।

कब्रिस्तान में काम करने वाले एक व्यक्ति कहते हैं कि असद जब यहां आते तो वह सभी लोगों को बुलाकर खूब खर्चा करते।

पाकिस्तान के दिवंगत अंपायर असद रऊफ 2 महीने पहले एक इंटरव्यू में कहते हैं, "इंडिया में जाकर काम करना फिर वहां से कंट्रोवर्सी ना आए ये तो मुमकिन नहीं है।"

वह बिंदु दारा सिंह समेत स्पॉट फिक्सिंग के आरोपों को नकार देते हैं,  विंदु दारा ने तो बाद में उनसे माफी भी मांगी थी।

उनके मुताबिक, "अगर मैं गलत था तो अगले साल मुझे आईपीएल में अंपायरिंग के लिए क्यों बुलाया गया?"

वह अपना मोबाइल दिखाते हुए कहते हैं, "इसमें आईपीएल कमिश्नर का मैसेज है कि असद भाई आपके बगैर आईपीएल हो ही नहीं सकता।"

असद रऊफ ने 5 आईपीएल में अंपायरिंग की थी।

असद लाहौर में अपने सेकेंड हैंड कपड़ों और जूतों के कारोबार पर बात करते हुए कहते हैं, "ये मेरी बिजनेस जॉब थी,  जो 35 साल से है, यह उस वक्त भी थी जब मैं क्रिकेटर था।

जब मैं आईसीसी एलीट पैनल का अंपायर था तब भी ये मेरा साइड बिजनेस था।

मैंने इसे छोड़ा नहीं,  मैं बड़ा सम्मान महसूस करता हूं,  मैं वो काम कर रहा हूं जिसे मेरी फैमिली में किसे ने नहीं किया।

ये मेरा बड़ा पुराना काम है। लोग इसे हल्के में ले रहे हैं।

मेरा बहुत बड़ा वेयरहाउस है। बहुत बड़ा स्टॉक है। प्रॉसेसिंग प्लॉन्ट है।

हम इन सेकेंड हैंड कपड़ों को रिप्रॉसेस करके 'एज गुड एज न्यू' करके बेचते हैं।"

वह कहते हैं, "सेकेंड हैंड क्वालिटी क्लोदिंग एंड शूज पाकिस्तान में क्या ये पूरी दुनिया में सबसे बड़ा काम है?

इसके अलावा मेरी क्रॉकरी की भी शॉप है।"

उनके मुताबिक, "पाकिस्तान में इम्पोर्टेड में सब क्वालिटी नहीं मिलती हैं।

मैं खुद कपड़ों का शौकीन रहा हूं।

लोगों को क्वालिटी मुहैया कराना, वे बड़ा इंट्रेस्ट दिखाते हैं. वे अच्छे पैसे देते हैं।

इसमे इन्वेस्टमेंट कम है, मार्जिन ऑफ प्रॉफिट ज्यादा है।

कम लागत में ज्यादा मुनाफा हो। आप लाइफ एंजॉय कर रहे हैं।

मेरा ख्याल है इससे अच्छा कोई काम नहीं है।"

असद रऊफ अंपायरिंग छोड़ने की दो वजह बताते हैं,  पहली, उनके बेटे की तबियत खराब थी, डॉक्टरों ने असद को सलाह दी थी कि वह बेटे के साथ समय बिताएं।

दूसरी उनकी निगाह में थोड़ी दिक्कत आ गई थी।

इसके अलावा उन्हें अब उतना स्पष्ट सुनाई नहीं देता था।

असद कहते हैं, "मैंने आरोपों के चलते अंपायरिंग नहीं छोड़ी।

मैंने 2012 में एक इंटरव्यू में कहा था कि 2013 में मैं अंपायरिंग छोड़ दूंगा,  जिन्हें यकीन न हो वे आईसीसी का नोटिफिकेशन चेक कर सकते हैं।

जहां आईसीसी ने साफ लिखा है कि 2013 असद रऊफ का अंपायर के तौर पर आखिरी साल होगा।"

असद गरीब नहीं थे. गरीबों की मदद करना उनकी फितरत थी।

उन्हें इस बात का गुमान नहीं था कि वह आईसीसी एलीट पैनल के अंपायर हैं।

वह अपनी दुकान के बाहर सड़क के किनारे रेहड़ी लगाने वाले, कुल्चे बेचने वालों के पास बैठ जाते।

उनका हालचाल पूछते,  गरीबों की मदद करने के लिए वह जेब में हाथ डालते जितने पैसे मुठ्ठी में आ जाते बिना गिने दे देते।

असद लाहौर के पॉश इलाके डिफेंस में रहते थे, उनके मकान की कीमत 2 करोड़ रुपये है।

जिस गाड़ी से वह अपनी दुकान आते-जाते उसकी कीमत 70 लाख रुपये है।

करीब इतनी ही कीमत की एक गाड़ी वह घर पर भी रखते थे जिसका इस्तेमाल बाकी लोग करते।  

उनके एक बेटे ने अमेरिका से ग्रेजुएशन किया था।

 असद 1997 में नेशनल बैंक ऑफ पाकिस्तान में ग्रेड थ्री ऑफिसर थे।

 अगर वह नेशनल बैंक से रिटायर होते तो उस समय तक एग्जीक्यूटिव सीनियर वाइस प्रेसीडेंट होते।

पूर्व भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की पत्नी साक्षी, असद को बड़े भाई की तरह मानती थीं।

हरभजन सिंह की वाइफ गीता बसरा उनका बड़ा आदर करतीं।

इतने साफ-सुथरे बेहतरीन और नेक दिल इंसान को मेन स्ट्रीम मीडिया ने गरीब और मोहताज बना दिया।

काश! भारतीय मीडिया ये सब समझ पाती।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

 

 



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