ओम प्रकाश।
भारत का घरेलू क्रिकेट सीजन जारी है, इसके साथ-साथ गांव, कस्बा, जिला और मंडल स्तर पर भी क्रिकेट टूर्नामेंट खेले जा रहे हैं।
गांव से लेकर मंडल स्तर पर होने वाले टूर्नामेंट में ज्यादातर टेनिस बॉल का इस्तेमाल किया जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों में इन टूर्नामेंट में कॉमेंट्री भी की जाती है।
गांव-देहात या जिला लेवल पर कॉमेंट्री करने वाले कॉमेंटेटर अक्सर यह मानकर कॉमेंट्री करते हैं कि एक दिन वे कॉमेंटेटर्स के नेशनल पैनल में शामिल होंगे और देश के लिए कॉमेंट्री करेंगे।
पहली बात इन कॉमेंटेर्स के लिए बता दूं जो गांव-देहात में कॉमेंट्री कर रहे हैं वह कॉमेंट्री नहीं नौटंकी है, तो कृपया नौटंकी करना बंद कीजिए।
टेनिस बॉल खेल कर एक क्रिकेटर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेल सकता है लेकिन टेनिस बॉल में कॉमेंट्री करने वाला कॉमेंटेटर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच में कॉमेंट्री करेगा इस पर मुझे शक है। अब मुझे बिहार के उस कॉमेंटेटर का उदाहरण मत दीजिएगा।
क्या टेनिस बॉल की कॉमेंट्री करने वाले कॉमेंटेटर के मन-मस्तिष्क में कॉमेंट्री के दौरान उस तरह की बातें आती हैं जैसी लेदर बॉल की कॉमेंट्री करते वक्त आती होंगी, शायद नहीं।
टेनिस बॉल में लेदर बॉल वाली ग्रिप नहीं होती है इसलिए आप वहां तक सोच नहीं पाएंगे।
टेनिस बॉल में सीम नहीं होती है।
इसलिए कॉमेंट्री के दरम्यान दिमाग क्रॉस सीम से की गई गेंद या सीम के सहारे की गई गेंद जैस शब्द तलाश नहीं करेगा। इसके अलावा और बहुत सारी चीजें हैं।
गांव-देहात में कॉमेंट्री करने वाले कॉमेंटेटर क्या इस बात का ख्याल रखते हैं कि उन्हें कहां बैठना है?
कॉमेंटेटर के बैठने की सर्वोत्तम जगह या तो बॉलिंग एंड पर होती या फिर विकेटकीपर के एकदम पीछे।
ऐसी जगह बैठने से आपको गेंद के अलावा बॉलर का एक्शन साफ दिखाई देता है।
पहले जब अंतरराष्ट्रीय मैच की कॉमेंट्री लिए कॉमेंटेटर जाते थे तो वे अपने प्रोड्यूसर से एक छोर पर कॉमेंट्री बॉक्स की मांग करते थे।
यह मांग मॉनिटर आने तक जारी रही।
कई कॉमेंटेटर अब भी स्क्वायर बैठने की अपेक्षा एक छोर पर बैठकर कॉमेंट्री करना पसंद करते हैं। अंतरराष्ट्रीय मैचों में दोनों छोर बॉलिंग होती है।
और हां ये ग्रामीण अंचलों में कॉमेंट्री करने वाले कॉमेंटेटर शायरी का इस्तेमाल न करने तो ज्यादा बेहतर रहेगा।
ये क्रिकेट है मुशायरा नहीं, सस्ती लोकप्रियता घातक है।
इसके सहारे आप कुछ हासिल नहीं कर सकते।
कई कॉमेंटेटर का कहना है कि उनके पास घरेलू मैचों में कॉमेंट्री करने का कई साल का अनुभव था।
लेकिन जब अंतरराष्ट्रीय मैच में पहली बार कॉमेंट्री की तो हाथ कांप रहे थे। बहुत कुछ लिखना बाकी रह गया है फिर कभी लिखेंगे।
लेखक क्रिकेट के जानकार हैं।
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