राजकुमार सोनी।
सोशल मीडिया में मर्यादित-अमर्यादित टिप्पणी के मामले में छत्तीसगढ़ में पदस्थ आईएएस और आईपीएस सबसे आगे रहे हैं, लेकिन पहली बार निलंबन की गाज गिरी है जेल सेवा की 2008 बैच की अफसर वर्षा डोंगरे पर। वर्षा पर आरोप है कि उन्होंने बस्तर के हालात जो तल्ख टिप्पणी की है, उससे न केवल सिविल आचरण संहिता का उल्लंघन हुआ बल्कि सरकार कठघरे में खड़ी हो गई है।
इधर मशहूर अधिवक्ता प्रशांत भूषण वर्षा के पक्ष में सामने आ गए हैं। भूषण ने कहा है कि सिविल सेवा परीक्षा में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के लिए कोर्ट ने रमन सिंह की सरकार को दोषी ठहराया था और वर्षा की लड़ाई और उनकी बहादुरी की सराहना की थी, लेकिन अब उन्हें ही निलंबित कर दिया गया है। निलंबन के बाद वर्षा ने अपने फेसबुक पर लिखा है वह संवैधानिक ढंग से संघर्ष के लिए तैयार हैं। माना जा रहा है कि अब भूषण ही वर्षा का केस लड़ेंगे।
वर्षा के निलंबन के बाद यह सवाल उठ रहा है कि सोशल मीडिया पर अपनी टिप्पणी के जरिए सरकार के लिए मुसीबत खड़ी करने वाले आईएएस और आईपीएस कैसे बचते रहे हैं। बस्तर के सुकमा में कलक्टर रहने के दौरान चर्चा में आए आईएएस एलेक्स पाल मेनन ने एक फेसबुक पोस्ट के जरिए यह दावा किया था कि 94 फीसदी फांसी दलित और मुस्लिमों को ही दी जाती है।
उन्होंने देश की न्यायिक व्यवस्था पर पक्षपात का आरोप लगाया था। उनकी इस पोस्ट और मीडिया में आई खबरों के बाद उन्हें सामान्य प्रशासन विभाग से नोटिस जारी किया। कहा तो यह भी गया कि अब तब में उनका निलंबन तय है, लेकिन उन्हें महज चेतावनी देकर छोड़ दिया गया।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अफसर शिव तायल जब बस्तर के कांकेर जिले में जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालक अधिकारी थे, तब उन्होंने जनसंघ के विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद पर दिए गए लेक्चर को लेकर सवाल उठाए थे। तायल ने अपनी फेसबुक पोस्ट पर लिखा था कि उपाध्याय ने कोई चुनाव भी नहीं लड़ा। इतिहासकार रामचंद्र गुहा की पुस्तक मेकर्स ऑफ मॉडर्न इंडिया में आरएसएस के तमाम बड़े लोगों का जिक्र है, लेकिन उसमें उपाध्याय कहीं नहीं हैं।
हालांकि विवाद बढ़ने के साथ ही उन्होंने अपनी पोस्ट हटा ली। सरकार ने त्योरी चढ़ाई तो नतीजा यह हुआ कि वे माओवादी इलाके से हटाकर राजधानी के मंत्रालय में पदस्थ कर दिए गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बस्तर दौरे के दौरान काला चश्मा लगाकर सुर्खियां बटोरने वाले आईएएस अमित कटारिया ने जेएनयू के तीन प्रोफेसरों पर ग्रामीणों को धमकाने और माओवादियों का साथ देने वाले मामले पर आरोपों के प्रमाणित हुए बगैर फेसबुक वॉल पर ग्रामीणों के कथित शिकायती पत्र को पोस्ट कर दिया था।
इस मामले में एक पत्रकार कमल शुक्ला ने उनसे बात की, तो कटारिया ने उन्हें मसल देने की बात कही। सोशल मीडिया में उनसे हुई बातचीत का ऑडियो टेप वायरल हो गया तो माना गया कि उन पर कार्रवाई होगी, लेकिन वे भी बच निकले।
कल्लूरी सिर्फ अटैच
मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में निशाने पर रहे बस्तर के पूर्व आईजी शिवराम कल्लूरी और उनके समर्थकों ने सोशल मीडिया पर जमकर उत्पात मचाया था। मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया पर हुए हमले के बाद जब कुछ महिला अधिवक्ताओं ने उन्हें मैसेज भेजा तो उन्हें अप्रिय टिप्पणियों का सामना करना पड़ा।
जगदलपुर, सुकमा और खुद के हटाए जाने के बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर एक फोटो भेजकर लिखा था थ्री इडियट्स। बस्तर में दमनकारी पुलिसिया नीति अपनाने, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर हमले करवाने, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और शोधकर्ताओं को परेशान करने के आरोप लगने के बाद सरकार फजीहत झेलती रही।
फजीहत से बचने के लिए सरकार ने सिर्फ इतना ही किया है कि वे पुलिस मुख्यालय में अटैच है और उन्हें कोई जवाबदारी नहीं दी गई है। पीयूसीएल की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष लाखन सिंह का आरोप है कि सरकार चुन-चुनकर दलित अफसरों पर कार्रवाई कर रही है। पहले सुकमा बस्तर में पदस्थ मजिस्ट्रेट प्रभाकर ग्वाल को बर्खास्त किया और अब दलित जेल अफसर वर्षा डोंगरे पर कार्रवाई की।
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