मल्हार मीडिया ब्यूरो।
सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम समाज में प्रचलित ट्रिपल तलाक और निकाह हलाला की परंपरा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर ऐतिहासिक सुनवाई दूसरे दिन भी जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भले ही इस्लाम की विभिन्न विचारधाराओं में तीन तलाक को वैध बताया गया हो, लेकिन यह निकाह खत्म करने का सबसे बुरा और अवांछनीय तरीका है।
वहीं मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह खेहर ने कहा कि ट्रिपल तलाक में कोई आपसी सहमति नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 15 में स्टेट लॉ की बात करते है लेकिन हम यहां पर्सनल लॉ पर चर्चा कर रहे हैं। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से कहा कि जब हम निकाह के दौरान कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हैं तो हम तलाक के दौरान उस नियम का पालन क्यों नहीं करते।
वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद (एमिकस क्यूरी) ने कहा कि खुदा की नजर में ट्रिपल तलाक गलत तो कभी कानून नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि किसी अन्य देश में मुस्लिम महिलाओं को ट्रिपल तलाक नहीं दिया जाता है, यह केवल भारतीय मुसलमान करते हैं।
सलमान खुर्शीद से सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि अगर ट्रिपल तलाक भारत में ही है तो अन्य देशों ने इस कानून को खत्म करने क लिए क्या किया है। इसके जवाब में खुर्शीद ने कहा कि दूसरे देशों में भी ऐसे ही मामले आए होंगे तभी यह खत्म हो पाया होगा।
इस मामले में फॉर्म फॉर अवेयरनेस ऑफ नेशनल सिक्योरिटी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत सभी नागरिकों को बराबरी का हक देता है। उन्होंने कहा कि सिर्फ लिंग के आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं हो सकता है। जेठमलानी ने कहा कि ट्रिपल तलाक मैरेज कॉन्ट्रेक्ट को खत्म करता है। ये सिर्फ पुरुष पर टिका हुआ है और महिलाओं का कोई आधार नहीं है।
वहीं गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि वह पहले यह निर्धारित करेगा कि क्या यह परंपरा इस्लाम के मौलिक तत्वों में है। वहीं, केंद्र ने साफ कर दिया कि इस तरह का तलाक लैंगिक न्याय के खिलाफ है और इस परंपरा को चुनौती देने वालों ने कहा कि यह मुख्य धार्मिक सिद्धांत का हिस्सा नहीं है।
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