शुभ्रता मिश्रा।
भारत की पिछड़ती जा रही मानसिकता पर लिखते—लिखते कलमें घिसती जा रही हैं और थोड़े—थोड़े दिनों के अंतरालों पर फिर नए विरोधाभास लिए सामाजिक दंगल होने लगते हैं। कहां देश की हर महिला दंगल पिक्चर की गीता-बबीता से अपनी बेटियों को प्रेरित करने का सोच रही हैं और हर पिता महावीर फोगट की मानसिकता से अपनी बेटियों को पालने के सपने संजोने लगे हैं। वहीं अचानक कल से मचे दंगल की कलाकार के कश्मीरी मुख्यमंत्री से मिलने ने बवाल खड़ा कर दिया है। वह कोमल हृदयवाली प्यारी सी कलाकार व्यर्थ माफी मांगने की विनम्रता से दबी जा रही है। कश्मीर कैसे उबर सकेगा इन पिछड़ी मानसिकताओं से, इन दकियानूसी हरकतों से। ज़ायरा वसीम के बिना वजह मांफी मांगने या स्वयं को कश्मीरी युवाओं का रोल मॉडल न मानने देने से क्या सचमुच कश्मीरी युवा मान जाएंगे। कश्मीरियों पर सामाजिक आतंकवाद के प्रहार का यह नया नमूना सामने आया है।
कम से कम इस मसले पर राजनीतिक रोटियां न सिकें। यह एक भोलीभाली युवा कलाकार की भावनाओं का प्रश्न है? हर कश्मीरी महिला के अधिकार का प्रश्न है? जो लड़की भारत की वास्तविक जीवन की एक अतिआत्मविश्वासी लड़की गीता फोगट का किरदार इतने आत्मविश्वास के साथ निभाती है, उसमें जब तक स्वयं आत्मविश्वास न होता वो यह भूमिका निभा ही नहीं सकती थी। लेकिन जिस तरह से उसे माफी मांगने के लिए खुलेआम मजबूर किया गया, यह जायरा के साथ—साथ पूरी भारतीय नारियों का अपमान है। अलगाववाद के फूट रहे इन दंगली अंकुरों का इसी समय मसल देना बेहद जरुरी है, क्योंकि कश्मीरी युवाओं विशेषरुप से कश्मीरी लड़कियों ने अभी अभी वहां के तथाकथित दंगलों से उबरना सीखा है। कश्मीरी बेटियों द्वारा जीते गए गोल्ड मैडलों की सच्ची कहानी अभी पुरानी नहीं हुई है।
क्यों कश्मीरी उन अलगाववादियों से डरें? इन अलगाववादियों के आतंकवादियों से रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं। कश्मीरी अलगाववादियों ने वैसे भी कश्मीर को आतंकवाद के सिवाय और कुछ नहीं दिया है। अब कश्मीरी लड़कियों के सामाजिक शोषण के बल पर और क्या देने का इरादा है। इस समय जब कश्मीर के शासन की बागडोर तक एक नारी के हाथ में है, तब मुख्यमंत्री के साथ—साथ जायरा के माता-पिता से लेकर रिश्तेदारों और पूरे देश के लोगों का यह उत्तरदायित्व बनता है कि जायरा वसीम को देनी पड़ी व्यर्थ माफी का पुरजोर विरोध करें। उसके अंदर आई असुरक्षा की भावना को बढ़ने न दें, नहीं तो एक कश्मीरी बाला को उठने में फिर उतना ही समय लग जाएगा। मानसिक उन्नति के जो कदम कश्मीरी युवाओं ने उठाएं हैं, उनको मिलकर हिम्मत देने की महती आवश्यकता है।
जनसत्ता से।
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