पर्दा प्रथा के बाद की आजादी तो अभी दूर की कौड़ी है

वामा            Jan 07, 2017



वीरेंदर भाटिया
आंकड़े बताते हैं कि रेप और छेड़खानी में संलग्न युवकों में 70 प्रतिशत गाँव की पृष्ठ भूमि से आते हैं। मुझे इन आंकड़ों पर संदेह है। ये आंकड़े 70 प्रतिशत से भी ज्यादा हो सकते हैं। कोई ग्रामीण पृष्ठभूमि का पाठक इस लेख से इत्तेफाक ना रखते हुए मुझे गरिया सकता है लेकिन यह सच है।

भारत की 67 प्रतिशत आबादी गाँव में बसती है। गाँव की स्त्री और शहर की स्त्री के सामाजिक रहन सहन में बड़ा अंतर है। गांव में आज तक पर्दा प्रथा के लिए ही लड़ाई लड़ी जा रही है। उसके बाद की आज़ादी तो अभी दूर की कौड़ी है। सोचिये जो युवा आज 20 साल का है उसने 20 साल से स्त्री को किस असमानता में पलते देखा है और उस असमानता को स्वीकार भी करते हुए स्त्री को उसी जगह रखने के तमाम नियम भी उसने अडॉप्ट किये।

गाँव में स्त्री को लेकर अजीब तरह की कुंठाएं हैं यह मैंने गाँव में रहते हुए बहुत नजदीक से देखा है। अब पिछले कुछ सालों में गाँव खुलने लगे हैं। नही तो मेरे एक दोस्त की शादी हुई। बाइक पर कभी कभार दोनों मियां बीवी शहर जाते तो बीवी को घर से बाइक पर नहीं बैठाता था। गाँव के 2 km बाहर जीटी रोड थी, वहां तक बीवी पैदल आती और फिर वह उसे बाइक पर बैठाता। और ऐसा ही वह वापिस आने पर करता। क्या कह लेगा गाँव उसे। पत्नी को बाइक पर क्यों बैठाया? लेकिन उसने जाने अनजाने में गाँव की दकियानूसी सोच का साथ दिया।

गाँव में आज भी हालात ये हैं कि कोई लड़की जींस नही पहनती। हां शहर से बाहर गयी है पढ़ने तो पहन लेगी लेकिन गाँव वापिस आते वक्त सलवार कमीज में होती है। गाँव की बहू आज भी पर्दा ही करती है। गाँव के अधेड़ नकारा लोग (नकारा लोग)चौराहे पर बैठे परदे वाली औरतों की निशान देहि करने में निपुण होते हैं। चाल देखकर बता देते हैं कि ये फलाने की बहु है। असल में वह लोग चाल नहीं देख रहे होते है। जिस्म का पूरा भूगोल भीतर उतार रहे होते हैं। भारतीय समाज में स्त्री की दशा अभी बहुत दयनीय है।

बेशक यूनिवर्सिटीज में पढ़ने वाले या शहरों में रहने वाले बच्चे देश में नई क्रांति की और देख रहे हो लेकिन आधी आबादी और उसके प्रति नजरिया अभी भी कुंठित है। उस कुंठित समाज में से निकल कर एक लड़का शहर में पढ़ने आता है। शहर में तो सभी लडकिया जींस में हैं। महत्वपूर्ण मोड़ यहां आता है कि कुछ लड़के शहर के माहौल को एक दम से जज्ब कर जाते हैं। बदलाव को स्वीकार करने की सोच के साथ शहर आते हैं। वह लड़के शहर के लड़कों को भी पीछे छोड़ देते हैं पढ़ने में और अन्य चीजो में। लेकिन कुछ लड़के स्त्री को लेकर जड़ ही रहते हैं। ये जड़ता किसी दिन अपराध में बदल जाती है। ऐसा ही उन लोगो के साथ है जो रोजगार के लिए शहर आते हैं।

समाधान
शहरी और बाहरी तमाम लोगों की यौन काउंसिलिंग जरुरी है। पर्चे बांटे जाएं। रेडियो टीवी से बात रखी जाए। कॉलेज में लेक्चर रखे जाएँ। स्कूल में ही इस पर ब्रॉड तरीके से बात रखी जाए। नये एडमिशन के वक्त सभी स्कूल कालेज और यूनिवर्सिटीज में अनिवार्य रूप से सबको सलीके से समझाया जाए कि ऐसी कोई शिकायत आयी तो उसका मतलब क्या है। गाँव को स्मार्ट बनाया ही जाए। गाँव में विकास जायेगा तब ही समाज ढंग से खुलेगा।
फेसबुक वॉल से।



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