अमेठी से ममता सिंह।
एक छोटी सी बच्ची जिसे लाल रंग बेहद पसन्द था.....अपनी माँ से अक्सर कहती कि ....माँ मैं बाजार से तुम्हारे लिए लाल - लाल साडी ब्लाउज लाऊंगी.....क्योंकि उसे लाल रंग के साथ - साथ माँ भी बहुत प्यारी थीं......वह सोचती माँ लाल साड़ी में कितनी खूबसूरत लगेंगी.......
माँ हंसती फिर पूछतीं.....अच्छा लाल साड़ी के लिए पैसे कहाँ से आएंगे ? बच्ची बोलती.....पापा की जेब से ,
पापा को जेब तक कैसे पहुंचोगी .... माँ कहती.... कुर्सी लगाकर बच्ची तपाक से जवाब देती
उसनें देखा था कि पापा की जेब में पैसे रहते हैं और ऑफिस से आने के बाद पापा के कपड़े खूँटी पर टँगे होते हैं......सो पैसे पाना मुश्किल काम न था , माँ सहित सभी उसकी बातें सुन हँसते......वो पापा की जेब से पैसे निकाल साड़ी नहीं ला पाई पर उसके ख्यालों में वो ख्वाब पलता रहा.....
वक़्त के साथ - साथ बच्ची बड़ी होती गयी और माँ बीमार ...... इतनी बीमार की जब तक वो छोटी बच्ची - बड़ी लड़की में तब्दील हुई माँ की दुनिया सिकुड़ते - सिकुड़ते घर से अस्पताल तक ही रह गयी ...... लड़की बड़ी होकर नौकरी पाती है ......अब पापा से पैसे लेने की जरूरत नहीं थी सो जिस रोज लड़की को अपनी पहली तनख्वाह मिली ..... उसनें सबके लिए कुछ न कुछ खरीदा पर माँ के लिए उसनें खूब चटक लाल रंग की साड़ी ली ...... माँ को जब उसने साड़ी दी तो पहले माँ हंसी .....फिर रोने लगीं कि इतने साल बाद भी उसे माँ के लिए लाल साड़ी लाने का ख्वाब याद रहा.....
माँ कैंसर से जूझते - जूझते , कीमो से पस्त , शरीर लिए रंगों की दुनिया से उदास या किंचित तटस्थ हो चुकी थीं......वो नए कपड़े पहनने से कतरातीं.......लड़की बार - बार माँ से इसरार करती की माँ प्लीज लाल साड़ी पहन कर दिखाओ न........
माँ हर रोज हंसकर टाल जातीं......आखिर एक रोज लड़की तनिक नाराज हो गयी.....माँ तुम ये साड़ी नहीं पहनोगी तो....मैं अब तुमसे बात नहीं करुँगी ......
माँ हंसी और बोलीं ..... अच्छा तू नाराज न हो ....अबकी होली के रोज मैं जरूर लाल साड़ी पहनूँगी ...... अब खुश हो जा
माँ जानती थीं लड़की को होली बहुत पसन्द है .... रंग .....उमंग....खुशियाँ.....पकवान सब होली में ही तो मिलता है .....सो उन्होंने होली का दिन चुना.....7 मार्च 2004होली आई.....
माँ ने वादा पूरा किया.....ठीक होली की सुबह अचानक से वो इस दुनिया और इसके कष्टों को छोड़ विदा हो गईं पर उनकी अंतिम यात्रा में वही लाल साड़ी उन्हें पहनाई गयी......जो उनकी बेटी लाई थी
वह लड़की नजरभर लाल साड़ी में माँ को देख नहीं पाई - क्योंकि उसकी आँखों में सैलाब था .....
हाँ जाते - जाते माँ के आँचल से छिटककर जरा सा लाल रंग उसकी आँखों की कोरों में ठहर गया ....अब देखने वाले अक्सर उससे कहते ..... अरे तुम्हारी आँखे लाल क्यों हैं......वो किसी को क्या बताये कि.....ये रंग नहीं.... किसी ख्वाब.....किसी मुहब्बत का जिन्दा दस्तावेज है ...,,जो आँखों में हमेशा के लिए दर्ज हो चुका है......
और एक बात......अब लड़की को होली जरा भी नहीं पसन्द.....
और लाल रंग तो कतई नहीं......पर जाने क्यों वो जब भी लाल रंग की साड़ी देखती है....देख कर निगाहें हटाना भूल जाती है.....आज सात मार्च है......रंग भरे मौसम का सबसे उदास , बेरंग दिन....आँखों की सुर्ख़ियों में इजाफे का दिन .....माँ के वादा निभाने का दिन.....
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