राकेश दुबे।
कितनी अजीब स्थिति है संसद के भीतर और बाहर की।
बेलगाम जुबान, अफ़सोस रहित माफ़ी, जैसी अप्रिय स्थिति वो भी सासदों द्वारा देखने को मिल रही है।
यह स्थिति सवाल पैदा करती है...
श्रीकांत सक्सेना।1984 में आज की उत्तर आधुनिक दुनिया के सबसे चर्चित दार्शनिक मिशेल फूको,एड्स के कारण इस दुनिया-ए-फ़ानी से कूच कर गए।
चूँकि चालीस-पचास साल तक दुनिया भर में...
डॉ. वेदप्रताप वैदिक।सर्वोच्च न्यायालय में आजकल एक अजीब-से मामले पर बहस चल रही है।
मामला यह है कि क्या भारत के कुछ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक माना जाए या नहीं?...
सचिन जैन।संवैधानिक चेतना और बुद्धिमत्ता (कान्स्टीट्यूशनल कान्शन्स और इंटेलिजेंस) का मतलब है संविधान के मूल्यों का निजी, सामाजिक और व्यवस्थागत जीवन में मौजूद होना, उनका पालन किया जाना।
ऐसी नजर विकसित...
हेमंत कुमार झा।भले ही वे महज दो दिनों में 'हीरो से जीरो' बन गए लगते हों, लेकिन मुजफ्फरपुर के नीतीश्वर कालेज के हिंदी वाले सर जी बिहार के उन हजारों प्रोफेसरों से अधिक...
प्रकाश भटनागर।नगरीय निकाय चुनाव में 6 जुलाई बुधवार को भोपाल के तुलसी नगर स्थित एक मतदान केंद्र का मामला है।
केंद्र के बाहर लगी टेबल पर भाजपा का एक कार्यकर्ता मतदाताओं को पर्ची...
राकेश दुबे।देश की राजनीति में यह कैसा कालखंड आ गया है जब राजनीतिक वर्चस्व के लिये वो सब हो रहा है, जिससे देश की राजनीति को परहेज़ बरतना था।
भारतीय राजनीति में परस्पर...
म
ममता मल्हार।
खरीदने वाला निकला ही बाजार में खरीददारी करने हैइंसानों की मंडी में खुद को बेचने वालों का ईमान क्या?
अफसोस इन्हें जनता चुनती है।देश में डेमोक्रेसी हैपर अब तो...
राकेश कायस्थ।महाराष्ट्र की राजनीतिक नौटंकी में किसी पक्ष में तर्क और नैतिकता ढूंढना एक अर्थहीन काम है। उससे भी ज्यादा अर्थहीन यह दोहराना है कि न्यायपालिका को संविधान की रक्षा करनी चाहिए।
शह...
राकेश दुबे।तकनीक के विस्तार ने जहाँ साइबर सुविधा का विस्तार किया है, वहीँ सुरक्षा की जटिल समस्या को भी जन्म दिया है।
यह एक ऐसा जटिल मसला है, जिसका विविध क्षेत्रों पर व्यापक प्रभाव...