खुन्नस खाए 17 खिलाड़ी खेल बिगाड़ने आतुर

खास खबर            Nov 02, 2023


कीर्ति राणा!

आज अंतिम दिन था मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने वाले खुन्नस के खिलाड़ियों को मनाने का। भाजपा भी जूझ रही है बागियों से, कांग्रेस भी अपने दल के बागियों की मान मनौवल में लगी है।भाजपा की राह में बिछे कांटे बुहारने में आरएसएस भी लगा हुआ है।

दबाब-प्रभाव और प्रलोभन के चलते तो दोनों प्रमुख दलों के बागियों में से कई शाम तक समर्पण भी कर देंगे लेकिन आरएसएस के जो पूर्व प्रचारक चुनाव मैदान में उतरे हैं उन्हें कौन मनाएगा?

आरएसएस के जो फंडे भाजपा को ताकतवर बनाते रहे हैं उन सारे फंडो की प्लानिंग करने वाले आरएसएस के पूर्व प्रचारकों ने जनहित पार्टी (जपा) के बैनर तले चुनिंदा सीटों पर अपने प्रत्याशियों को निर्दलीय खड़ा कर दिया है।

आरएसएस के लिए ये सभी भूतपूर्व हो गए हैं इसलिए इन पर वर्तमान के बड़े से बड़े  भाई साब का आदेश भी निष्प्रभावी ही रहना है।

प्रदेश की हॉट सीट में तब्दील होते जा रहे इंदौर के एक नंबर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी कैलाश विजयवर्गीय के सामने जपा के अभय जैन ने निर्दलीय फार्म भर दिया है।पहली बार मतदान करने वाले युवा मतदाताओं के लिए अभय जैन का नाम अंजाना हो सकता है लेकिन आरएसएस के समर्पित कार्यकर्ताओं के लिए यह बड़ा नाम इसलिए है कि अभय जैन आरएसएस के प्रचारक रह चुके हैं।

संघ के दायित्वों से 15 साल पहले मुक्त हो चुके अभय जैन यहां से जीते भले ही नहीं लेकिन खेल बिगाड़ेंगे वाली खुन्नस तो निकाल ही सकते हैं।

संघ कार्यकर्ताओं को शायद याद आए खजराना में हुए दंगों के वक्त हिंदूवादी संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के विरोध में राष्ट्र जागरण मंच के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन और नंदानगर में घर घेरने के लिए कूच किया था तब संघ के गणवेशधारी इस क्षेत्र के कार्यकर्ताओं ने इन सब की ठुकाई की थी। 

एक तरह से जपा (जनहित पार्टी) इस बार चुनाव लड़ने की रिहर्सल कर रही है। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भी जपा सक्रिय रहेगी और सब कुछ ठीकठाक रहा तो पांच साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में 230 सीटों पर प्रत्याशी खड़े करने जितनी अपनी जमीन भी मजबूत कर लेगी।

कांग्रेस से ज्यादा भाजपा को नुकसान पहुंचाने की समझ इन पूर्व प्रचारकों की खुन्नस इसलिए भी बन गई है कि जिस भाजपा को सत्ता तक पहुंचाया वह भी जनहित के मुद्दों पर काम करने की अपेक्षा तिकड़मबाजी से सत्ता में बने रहने के खेल में लग गई।

दो दशक पहले तक इंदौर का अर्चना कार्यालय जिन रणवीर सिंह भदौरिया भाईसाब के कारण पहचाना जाता था, जनहित पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष अभय जैन भी तब संघ में सक्रिय थे।

संघ के दायित्वों से मुक्त होने के बाद पिछले पंद्रह वर्षों में केरल से मिजोरम तक भारत यात्रा, मिजोरम में रहने वाली जनजातियों का पुनर्वास कराने के साथ ही सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दों पर जनआंदोलनों से लोगों में जागरण करते रहे पूर्व प्रचारक जैन के साथ पूर्व प्रचारक मनीष काले और विशाल बिंदल भी जनहित पार्टी के नीति निर्धारक हैं।

इस पार्टी की कार्यकारिणी में डा सुभाष बारोड़, राहुल सिंह,राजीव भदौरिया,इंजीनियर स्वप्निल जोशी, मनीष गुप्ता, हेमंत कुलकर्णी, प्रदीप जोशी, रुक्मिणी वर्मा, चंद्रशेखर बारोड़ इन सब ने लंबे चिंतन-मंथन के बाद 10 सितंबर को भोपाल में जनहित पार्टी के गठन की घोषणा की थी।पार्टी को अभी चुनाव चिह्न नहीं मिला है इसलिए चुनिंदा सीटों पर खड़े प्रत्याशी निर्दलीय लड़ेंगे।

पहली सूची में 8 और दूसरी सूची में 9 कुल 17 प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। इन 17 में से 4 प्रत्याशी इंदौर शहर के 4 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ेंगे।एक नंबर में अभय जैन हैं यहां से भाजपा के विजयवर्गीय, कांग्रेस के संजय शुक्ला हैं।

दो नंबर में महेश नेहुलगर्जे पिछले चुनाव में जीत का कीर्तिमान बना चुके भाजपा के रमेश मेंदोला, कांग्रेस के चिंटू चौकसे का, चार नंबर में विजय दुबे भाजपा की मालिनी गौड़, कांग्रेस के राजा मांधवानी, पांच नंबर में न चाहते हुए फिर से चुनाव लड़ रहे भाजपा के महेंद्र हार्डिया और कांग्रेस के सत्तू पटेल का खेल बिगाड़ने के लिए डॉ सुभाष बारोड़ मैदान में है।

इस क्षेत्र से संघ के अशोक अधिकारी का नाम लगभग तय होने के बाद अचानक हार्डिया का नाम फायनल किया गया था। शाजापुर में कालापीपल, खंडवा, पंधाना भोपाल की गोविंदपुरा, तोमर-सिंधिया के प्रभाव वाले ग्वालियर में लश्कर दक्षिण और ग्वालियर के साथ सतना, रीवां के मऊगंज, छिंदवाड़ा में सोसर और पांढुर्ना और टीकमगढ़ की निवाड़ सीट से भी जनहित पार्टी के प्रत्याशियों ने नामांकन दाखिल किया है।

बमुश्किल डेढ़ महीने पहले गठित पार्टी के प्रत्याशियों के मुद्दे क्या होंगे? इस संबंध में अभय जैन कहते हैं हिंदूत्व के साथ राम मंदिर हमारा भी मुद्दा है लेकिन राम मंदिर से हमारा आशय राम राज्य की स्थापना से है जिसका सपना महात्मा गांधी देखते थे और राम मंदिर के हल्ले में जिसे पीछे धकेल दिया है।

राम राज्य यानी सुशासन जो आज मप्र में नजर नहीं आता, शिक्षा स्वास्थ्य, बराबरी का हक मिले ये कौन नहीं चाहता, लोग कार्यालयों में जाते हैं समस्या के निदान के लिए लेकिन काम तो होता नहीं, इज्जत भी नहीं मिलती।

इस सारे बिगड़े हुए सरकारी ढर्रे को पटरी पर लाने के लिए ही जनहित पार्टी गठित की गई है। हमें पता है जो 18 प्रत्याशी खड़े किए हैं जरूरी नहीं सब जीत ही जाएंगे, हार भी गए तो हमें चुनाव लड़ने का मैदानी अनुभव तो मिल ही जाएगा। गलतियां पता चलेंगी, उनसे सीखेंगे तो भविष्य में होने वाले चुनावों में यह अनुभव काम आएगा। हम तो

संघ में रहते हुए भी यही बात करते थे लेकिन यह महसूस किया कि गवर्नेंस के मामले में भाजपा भी सफल नहीं हुई।

भाजपा-कांग्रेस जैसे बड़े दलों की तरह न तो हमारे पास धन है ना दिखावा तो जाहिर है प्रचार खर्चीला भी नहीं रहेगा। अभय जैन कहते हैं रैली, रोड शो में भरोसा नहीं, हम सीधे डोर टू डोर संपर्क करने, मतदाताओं का विश्वास जीतने में भरोसा रखते हैं। लोगों से मिलते हैं, उनसे पार्टी के काम के लिए अर्थ संग्रह करते हैं। असली चुनाव की तैयारी के लिए इस बार का चुनाव रिहर्सल या कह सकते हैं इस चुनाव में हम अंडर ट्रेनिंग हैं ।

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