मल्हार मीडिया भोपाल।
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव का अंतिम दौर शुरू हो गया है. लिहाजा, चुनाव आयोग की गाइडलाइन के हिसाब से मंगलवार से सर्वे व ओपिनियन पोल जारी नहीं होंगे.
सबसे पहले जानिए भोपाल की सातों सीटों के बारे में. भोपाल में उत्तर, मध्य, नरेला, हुजूर, गोविंदपुरा, दक्षिण-पश्चिम और बैरसिया विधानसभा सीटें हैं. सर्वे में सामने आया है कि यहां न तो बागी प्रभावी और न ही तीसरा दल. मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है.
साल 2018 में भाजपा ने गोविंदपुरा, नरेला, हुजूर और बैरिसया सीट जीतकर बढ़त कायम की थी. जबकि कांग्रेस के हिस्से में उत्तर, मध्य व दक्षिण-पश्चिम सीट आई थी. इससे पहले 2013 में भाजपा ने उत्तर को छोड़कर बाकी सभी 6 सीटें जीती थीं. 2008 में भी यही स्थिति थी. साल 2003 में भोपाल में 4 सीटें थी. इनमें से 3 में भाजपा और एक में कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी.
इस बार भी भाजपा को मिल सकती हैं 4 सीट
सर्वे के मुताबिक, भोपाल जिले में भाजपा साल 2018 का प्रदर्शन दोहरा सकती है. हालांकि इनमें से दो सीटें ऐसी है जिनमें उसे 2018 में हार मिली थी. लेकिन अब वह यह सीटें जीत सकती है. साथ ही, उसे जीती हुई दो सीटों पर हार का सामना करना पड़ सकता है.
सीट वार जानिए किसे मिल सकती है चुनाव में जीत
भोपाल उत्तर – यहां साल 1998 से कांग्रेस लगातार जीत रही है. इस बार यहां से विधायक आरिफ अकील की बजाय उनके बेटे आतिफ अकील को कांग्रेस ने टिकट दिया है. जबकि भाजपा ने पूर्व महापौर आलोक शर्मा पर दांव आजमाया है. आलोक शर्मा साल 2003 में चुनाव लड़ चुके हैं, तब उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन लगातार सक्रियता और क्षेत्र में महापौर रहने के दौरान किए गए कामों से उन्हें फायदा मिलता हुआ दिखाई दे रहा है. जबकि आतिफ के साथ दिक्कत बागियों से हैं. यहां पर उनके चाचा आमिर अकील बागी हैं. साथ ही कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में शुमार नासिर इस्लाम भी चुनाव मैदान में उतरकर आतिफ का नुकसान पहुंचा रहे हैं.
मध्य – वर्ष 2008 में हुए परिसीमन के बाद यह सीट अस्तित्व में आई. तब भाजपा से ध्रुव नारायण सिंह को जीत हासिल हुई थी. 2013 में भाजपा से सुरेंद्र नाथ सिंह जीत लेकिन 2018 में कांग्रेस के आरिफ मसूद ने उन्हें हरा दिया. इस बार भाजपा ने ध्रुव नारायण सिंह को टिकट पहली ही सूची में दे दिया था. इसका फायदा सिंह को मिल रहा है. साथ ही वे बीते 10 साल से लगातार क्षेत्र में सक्रिय हैं. जबकि आरिफ मसूद के खिलाफ एंटी इन्कमबेंसी है. मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में ही उनके खिलाफ नाराजगी है.
गोविंदपुरा – पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की यह सीट रही है. यहां से वे 44 साल लगातार जीते. वर्ष 2018 में उनकी पुत्रवधु कृष्णा गौर विधायक हैं. भाजपा का यह गढ़ है. हिंदु बाहुल्य इस सीट पर इस बार भी भाजपा को फायदा होता नजर आ रहा है. जबकि कांग्रेस के रविन्द्र साहू को पहचान का संकट है. गुटों में बंटी कांग्रेस यहां भाजपा के संगठन से मुकाबला नहीं कर पा रही है.
हुजूर – परिसीमन के बाद 2008 में यह सीट वजूद में आई. तब से अब तक यह सीट भाजपा के पास है. भाजपा विधायक लगातार तीसरी बार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. कोलार सिक्स लेन, बैरागढ़ में फ्लाईओवर और ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों के जाल विछाने जैसे कामों से उन्हें सीधा फायदा मिल रहा है. वहीं कांग्रेस ने बैरागढ़ के सिंधी बाहुल्य क्षेत्र को देखते हुए एक बार फिर नरेश ज्ञानचंदानी पर भरोसा जताया है. वे 2018 में चुनाव हार चुके हैं. इस बार भी उनके लिए चुनाव जीतना मुश्किल है.
दक्षिण-पश्चिम : वर्ष 2018 में कांग्रेस के पीसी शर्मा ने तत्कालीन मंत्री उमाशंकर गुप्ता को हराया था. इससे पहले गुप्ता लगातार तीन बार इस सीट से जीत चुके थे. इस बार भाजपा ने गुप्ता का टिकट काटकर भगवान दास सबनानी को अपना उम्मीदवार बनाया है. यह सरकारी कर्मचारी बाहुल्य सीट है. लिहाजा, यहां ओल्ड पेंशन स्कीम सबसे बड़ा मुद्दा है. पीसी शर्मा को इसका फायदा होता नजर आ रहा है. जबकि सबनानी को भाजपा के कार्यकर्ताओं से भीतरघात का खतरा है.
नरेला – भोपाल उत्तर सीट के बाद यहां के नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं. यह सीट भी 2008 बनी थी. तब से यहां भाजपा से मंत्री विश्वास सारंग लगातार जीत दर्ज कर रहे हैं. कांग्रेस ने इस बार युवा मनोज शुक्ला पर भरोसा जताया है. मनोज को मुसलमानों का बड़ा वोटबैंक का समर्थन हासिल है. सबसे बड़ी बाद उन्हें ब्राह्मण वोट बैंक का फायदा मिल रहा है. शुक्ला ने महिलाओं को बड़ी संख्या में धार्मिक यात्रा कराई है. इसका भी उन्हें लाभ मिल सकता है. इसी वजह से विश्वास सारंग के सामने मनोज ने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है.
बैरसिया – इस सीट से कांग्रेस सिर्फ एक बार जीती है. यह आरक्षित सीट है. भाजपा ने लगातार तीसरी बार विधायक विष्णु खरे पर भरोसा किया है. कांग्रेस ने जयश्री हरिकरण को टिकट दिया है. उन्हें 2018 में भी टिकट दिया था लेकिन तब खत्री ने आसानी से हरा दिया था. इस बार खत्री एंटी इन्कम्बेंसी में फंस गए हैं. यानी हरिकरण को फायदा मिल सकता है.
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