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वीथिका

श्रीश पांडे। पनवाड़ी सिंहस्थ नहाबे की तैयारी कर रये हते कि उके पैलां उते साधू-संतन में गोली-गाली, गारी-गुप्ता, लाठी-डंडा, ऐसो चलो कि सबरे वैराग्य...
May 17, 2016

ऋचा अनुरागी। पापा को अक्सर माँ कहती,यह क्या है ,आपका लिखा कैसे संभालू? कभी झाडू में बस के टिकट पर लिखी पंक्तियाँ ,कभी अखबार...
May 17, 2016

ममता यादव। सिंहस्थ में साधु—संतों का जमावड़ा है। कई संतों को आप सेलिब्रिटी संत कह सकते हैं क्योंकि जनता इनके पास इसलिये जा रही है कि इन्हें टीवी पर देखा है प्रवचन देते हुये। तमाम...
May 05, 2016

ऋचा अनुरागी। बच्चे स्विमिंग पूलों के घेरे में बंधे हुये जल में तैरना सीखते हैं,पर पापा को तो बिफरी हुई नर्मदा की कल-कल करती...
May 03, 2016

श्रीश पांडे। बड़े सौकाउं पनवाड़ी मित्र प्यारे से कैन लगे कि सिंहस्थ मेला चलने का? हम-तुम सोई नहा-धो के दान-पुण्य कर आइये। काय से...
Apr 29, 2016

ऋचा अनुरागी। दो दिनों से बुखार और थ्रोड़ इनफेक्शन से पीडित हूँ और माँ-पापा बहुत याद आ रहे हैं । बचपन में जो कभी...
Apr 26, 2016

स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी। भारतीय संस्कृति की अनेक विशिष्टताओं में प्रकृति के प्रति सम्मानीय और पवित्र भावना एक विशिष्ट गुण के रूप में मूल्यांकित होती आयी है। पर्वत, वन, नदियाँ- ये सब भारतीय जन-जीवन से अत्यंत...
Apr 25, 2016

सन्तोष मिश्र। समुद्र-मंथन की कथा से हमारा और हमारी स्मृति का परिचय बहुत पुराना है। भक्त कवियों, तांत्रिकों और तमाम सारे साहित्य में देह को कुम्भ कहा गया है। हमारी ज्ञान-परम्परा समुद्र का मंथन...
Apr 24, 2016

श्रीश पांडे। बेजा पर रई गर्मी में पनवाड़ी गमछा बांध्ो पान की दुकान में बैठे चिंतन कर रये हते कि का हुइए आसौं... काय...
Apr 21, 2016

ऋचा अनुरागी। मैं अनेकों रंग-रूपों में उन्हें देखती हूँ,पर जितना देखती हूँ वे उससे कहीं हजार गुना अधिक रंग-रूपों में परिलक्षित होते नज़र आते...
Apr 19, 2016